Saturday 11 February 2012

रुदाद-ए-मोहब्बत दिल में
कभी आई ना आई 
बहार-ए-मदहोशी दिल में
कभी आई ना आई

दर्द पुराना कोई यार बना
हमसफ़र का सफ़र आज़ार बना
उल्फत-ए-कश्मकश जिग़र में
कभी आई ना आई

वो फ़रिश्ता-ए-धडकनों का 
था सितारा इसी नज़र का
पयाम-ए-मसर्रत जहाँ में
कभी आई ना आई

फिर आपकी कमी सताए
प्यासे नैनों में नमी सताए
परछाई सुकून सी ज़िन्दगी में 
कभी आई ना आई......

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