सूखी हुई शाखों में कही
दिल-ए-एहसास देता हैं कोई
तन्हा मंजिल, सफ़र भी तन्हा
याद तेरी लाता हैं कोई
जब कभी किसी की आहट हुई
दिल में खलिश सी बढ़ने लगी
ज़िन्दगी रंज-ओ-महफ़िल तो नहीं
मगर तन्हा में शम्मे जलते हैं कभीं
लफ्ज़ के फासले लाबोसे कहीं
धडकनों की ख्वाहिशे दिलो में नहीं
दर्द के सिलसिले युहीं बिताये
रोते हैं अक्स भी आइनों में कभीं.....
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